Monday, February 1, 2010

बूँद बूँद...


बूँद बूँद कर बरसी बरखा, आज शाम कुछ नटखट है,
कुदरत का अंदाज़ तो देखो, जो बदल रही करवट है ..

बूंदों से वो याद जो आए, मन बावरा मचला जाए,
मचला मन कोई गीत जो गाए, सुर कैसे मिला पाऊ मैं ??
सुर बिना अब क्या मैं गाऊ, क्या मन में, किस को बतलाऊ,
बारिश समझे मुझको, बरसे, जैसे बरसा जाऊ मैं ...

फिर से आज कोई फूल खिलेगा, जब बादल धरती से मिलेगा,
तीनका बूँद पी कर जी लेगा, समा ये देखता जाऊ मैं...
चातक की चाह को जल मिलेगा, मेघधनूश अब और खिलेगा,
खिल कर तेरे दिल से मिलेगा, हाँ, यही तो बस चाहूँ मैं...

बूँद बूँद कर बरसी बरखा, आज शाम कुछ नटखट है,
कुदरत का अंदाज़ तो देखो, जो वो बदल रही करवट है ..

1 comment:

  1. i just love ur words and feelings hidden in each n every word

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